हाल के महीनों में भारतीय बैंकिंग प्रणाली में क्रेडिट और डिपॉजिट की वृद्धि के बीच का फासला घटा है। यह बदलाव भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों का परिणाम है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि RBI के नवंबर 2023 में किए गए निर्णयों का प्रभाव अब नजर आने लगा है। आइए, इस कहानी को विस्तार से समझते हैं।
सितंबर में, क्रेडिट वृद्धि 12.6 प्रतिशत पर आ गई, जो जून में 15 प्रतिशत थी। वहीं, डिपॉजिट की वृद्धि 11.7 प्रतिशत बनी रही। इससे यह स्पष्ट होता है कि जब क्रेडिट वृद्धि में नरमी आई है, तो डिपॉजिट की वृद्धि स्थिर रही है, जिसके चलते दोनों के बीच का अंतर 90 बेसिस पॉइंट्स तक कम हो गया है। जून में यह अंतर 330 बेसिस पॉइंट्स था।
RBI ने बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) के लिए असुरक्षित उपभोक्ता क्रेडिट पर रिस्क वेट बढ़ाकर 25 बेसिस पॉइंट्स कर दिया था। इसका उद्देश्य संभावित जोखिम के निर्माण को रोकना था। इस निर्णय का सकारात्मक प्रभाव नजर आ रहा है, जिससे बैंकों की फंडिंग जरूरतों को पूरा करने के लिए सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट (CDs) के माध्यम से फंड जमा करने की होड़ कम हो सकती है।
RBI के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट के जारी होने में 57 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है, जो ₹6.01 लाख करोड़ तक पहुंच गई है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) और निजी क्षेत्र के बैंकों (PVBs) ने क्रमशः 13 प्रतिशत और 11.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है।
सितंबर में, मेट्रोपोलिटन शाखाओं के क्रेडिट में 11.6 प्रतिशत की कमी आई, जबकि कृषि, उद्योग, आवास और व्यक्तिगत ऋणों में क्रमशः 11.5 प्रतिशत, 23.7 प्रतिशत, 16.5 प्रतिशत और 14.9 प्रतिशत का हिस्सा रहा। निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र में क्रेडिट वृद्धि 16.5 प्रतिशत रही, जो मुख्य क्रेडिट वृद्धि से अधिक है।
डिपॉजिट की बात करें, तो RBI की BSR रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है कि उच्च ब्याज दरों की वजह से कई डिपॉजिट उच्च ब्याज दर के श्रेणी में चले गए हैं। सितंबर में 7 प्रतिशत से अधिक ब्याज वाले टर्म डिपॉजिट की हिस्सेदारी 68.8 प्रतिशत हो गई है। इसके साथ ही, वरिष्ठ नागरिकों के डिपॉजिट की हिस्सेदारी भी बढ़कर 20.1 प्रतिशत हो गई है।
भारतीय बैंकिंग प्रणाली में क्रेडिट और डिपॉजिट की वृद्धि के बीच का यह परिवर्तन RBI की प्रभावी नीतियों का परिणाम है। यह न केवल बैंकिंग क्षेत्र के लिए, बल्कि समग्र अर्थव्यवस्था के लिए भी सकारात्मक संकेत है। आने वाले समय में, यदि ये प्रवृत्तियाँ जारी रहती हैं, तो भारतीय अर्थव्यवस्था और मजबूत हो सकती है।
क्या क्रेडिट और डिपॉजिट की वृद्धि का अंतर महत्वपूर्ण है?
जी हां, यह अंतर बैंकों की ऋण वितरण क्षमता और वित्तीय स्थिरता को प्रभावित करता है।
RBI के निर्णयों का क्या प्रभाव पड़ा है?
RBI के निर्णयों से असुरक्षित उपभोक्ता क्रेडिट में कमी आई है, जिससे क्रेडिट वृद्धि में नरमी आई है।
क्या सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट (CDs) की मांग में कमी आएगी?
हां, क्रेडिट वृद्धि में कमी आने के कारण CDs की मांग में कमी आ सकती है।
क्या डिपॉजिट की वृद्धि स्थिर है?
हां, सितंबर में डिपॉजिट की वृद्धि 11.7 प्रतिशत रही, जो पिछले क्वार्टर के समान है।
कौन से क्षेत्र में सबसे अधिक क्रेडिट वृद्धि हुई है?
निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र में 16.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो कि मुख्य क्रेडिट वृद्धि से अधिक है।
क्या वरिष्ठ नागरिकों के डिपॉजिट में वृद्धि हुई है?
हां, वरिष्ठ नागरिकों के डिपॉजिट की हिस्सेदारी 20.1 प्रतिशत हो गई है।
क्या कृषि क्षेत्र में क्रेडिट वृद्धि हुई है?
कृषि क्षेत्र में क्रेडिट वृद्धि 11.5 प्रतिशत रही है, जो स्थिर है।
क्या मेट्रोपोलिटन शाखाओं में क्रेडिट वृद्धि कम हुई है?
हां, मेट्रोपोलिटन शाखाओं में क्रेडिट वृद्धि 11.6 प्रतिशत रही है, जो कम है।
क्या यह बदलाव भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक है?
हां, यह बदलाव भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत है, क्योंकि यह वित्तीय स्थिरता को दर्शाता है।
क्या RBI की नीतियों का भविष्य पर प्रभाव पड़ेगा?
जी हां, RBI की नीतियों का दीर्घकालिक प्रभाव होगा, जिससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
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